पवित्र अमरनाथ गुफा (Amarnath Holy Cave) में करीब एक महीने पहले अचानक बाढ़ (Flash Flood) आ गई थी. जिसमें करीब डेढ़ दर्जन लोगों की मौत हो गई. करीब 40 लोग लापता हो गए. एनडीआरएफ,क्योंहुआथाअमरनाथहादसाहिमालयकेएक्सपर्टवैज्ञानिकोंनेबताईअसलीवजह एसडीआरएफ, सीआरपीएफ और भारतीय सेना के जवानों ने मिलकर करीब 15 हजार लोगों को इस फ्लैश फ्लड के खतरनाक इलाके से बाहर निकाला गया था. हादसे की वजह से जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि आखिरकार सिर्फ एक वजह है या कई परिस्थितियां हैं जिनसे ये हादसा हुआ.पिछले कुछ दशकों में पूरी दुनिया में तापमान बढ़ा है. इस बात की पुष्टि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट भी करती है. साल 1950 के बाद लगातार बढ़ रही गर्मी और भारी बारिश की वजह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग है. भारत में साल दर साल अचानक और अत्यधिक बारिश बढ़ रही है. पांच दशकों में बारिश संबंधी आपदाओं की मात्रा 50 फीसदी बढ़ गई है. पिछले कुछ सालों से हिमालयी और पहाड़ी इलाकों में फ्लैश फ्लड की मात्रा बढ़ गई है. फिलहाल जो स्टडी की गई है, उसका नेतृत्व किया वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के प्रमुख डॉ. कालाचंद सैन, डॉ. मनीष मेहता और विनीत कुमार ने.अब बात करते हैं 8 जुलाई 2022 को अमरनाथ गुफा में हुआ हादसे की. शाम 5.30 बजे तेज बारिश की वजह से फ्लैश फ्लड आया. जिसकी वजह से अमरनाथ के कैंप एरिया में भारी तबाही देखने को मिली. अमरनाथ गुफा समुद्र तल से 12,795 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. गुफा के पास ही अमरावती नाला (Amaravati Nala) है. अमरनाथ पर ऐसा हादसा होना मुश्किल माना जाता है. क्योंकि ये अर्ध-शुष्क ट्रांस हिमालयन (Semi-Arid Trans Himalayan) इलाके में है.अमरनाथ गुफा और उसके आसपास मई से अक्टूबर तक 300 मिलिमीटर से कम बारिश होती है. अमरनाथ का इलाका उत्तरी गोलार्ध में आ जाता है. इसके उत्तर में काराकोरम रेंज (Karakoram Range), दक्षिण और पश्चिम में पीर पंजाल (Pir Panjal Range) और पूर्व में जंस्कार रेंज (Zanskar Range) है. दिसंबर से फरवरी के इलाके में यहां पर मध्यम से लेकर भारी बर्फबारी होती है. पूरे पीर पंजाल रेंज में दक्षिण एशियाई मॉनसून की वजह से बारिश की कोई वजह नहीं बनती, क्योंकि उसका असर कम होता है.पीर पंजाल रेंज के पहाड़ अरब सागर (Arabian Sea) के नजदीक हैं. इसलिए यहां पर दक्षिण-पश्चिम दिशा की तरफ से बादलों का जमावड़ा होता है. इसकी वजह से गर्मियों में भी यहां अच्छी बारिश हो जाती है. अमरनाथ गुफा के नीचे मौजूद ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन (AWS) ने 8 जुलाई 2022 को बारिश का जो डेटा रिकॉर्ड किया, वो ये है- शाम को 4.30 से 5.30 के बीच 31mm बारिश हुई. 5.30 से 6.30 के बीच 25mm बारिश हुई. 6.30 से 7.30 के बीच 19 mm बारिश हुई. यानी कुल मिलाकर 75 मिलिमीटर बारिश तीन घंटे में हुई. यह बादल फटने की तय श्रेणी से बहुत कम है.भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार एक घंटे में 100 मिलिमीटर या उससे ज्यादा की बारिश होने पर उसे बादल फटना कहा जाता है. लेकिन अमरनाथ गुफा में तो तीन घंटे में 75 मिलिमीटर बारिश हुई. मौसम विभाग ने बताया कि अमरनाथ गुफा के आसपास हुई बारिश बेहद स्थानीय स्तर की थी. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि 8 जुलाई को अमरनाथ के ऊपर इंटेंस कनवेक्टिव क्लाउड क्लस्टर बन गया था. यानी सरल भाषा में कहें तो भारी मात्रा बादल जमा थे. मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी जारी की थी. और वो हुई भी.अमरनाथ गुफा और उसके आसपास की जियोमॉर्फोलॉजी (Geomorphology) यानी भू-आकृति विज्ञान को देखें तो पता लगता है कि इसे यहां पर ग्लेशियर की गतिविधियां काफी होती रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में आसपास हिमस्खलन यानी एवलांच (Avlanches) ने भी बदलाव किए हैं. बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं. इसलिए U आकार की घाटी की सतह से 100 मीटर ऊपर मौजूद अमरावती नाला पर कचरा जमा हो रहा है. सर्दियों में जमा होने वाली बर्फ गर्मियों में पिघलने लगती है. यह कई वर्षा मार्गों को भर देती हैं. ये सब अमरावती नाला में आकर मिल जाते हैं. जिससे उस नाले पर दबाव बनता है.भारी बारिश होने पर अमरावती नाला में ऊपर की तरफ से काफी मिट्टी और पत्थर बहकर आते हैं. नाला की क्षमता जब खत्म हो जाती है तो वह फट पड़ता है. जैसा कि 8 जुलाई 2022 को हुआ. नाला के ऊपर और नीचे की तरफ लगातार इरोज़न होता रहता है. मिट्टी कमजोर है. पत्थर ढीले हैं. बारिश की वजह से ये टूटने लगते हैं. यही मिट्टी और पत्थर भारी बारिश में बहकर अमरावती नाला तक आए. फिर वहां से नीचे की ओर. इससे पहले ऐसी ही एक घटना 28 जुलाई 2021 को भी हुई थी. वह भी इसी नाले पर हुई थी.